यौन उत्पीड़न और बलात्कार जैसा मामला कितना संवेदनशील होता है, यह हम सब जानते हैं। लेकिन कई बार अदालतों में इन मामलों को लेकर ऐसी टिप्पणियां हो जाती हैं या फिर वहां से ऐसे फैसले आ जाते हैं कि विवाद हो जाता है। लोग यकीन नहीं कर पाते हैं कि आखिर ऐसा हुआ तो कैसे। केरल और मध्य प्रदेश की दो घटनाएं भी कुछ इसी तरह की हैं।
नई दिल्ली: अदालतों में भी इंसान ही बैठे हैं, जज भगवान नहीं होते... फिर भगवान भी से तो गलतियां होती हैं... इस तरह की बातें अदालतों के फैसलों या जजों की टिप्पणियों पर बहस के दौरान सुनी जाती हैं। यह सही ही है कि गलतियां स्वाभाविक हैं, हर कोई करता है, चाहे वह किसी कोर्ट के जज ही क्यों न हों। आखिर इसीलिए तो निचली अदालत, उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय की बहुस्तरीय न्याय व्यवस्था लागू की गई है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के जजों की टिप्पणियों और फैसलों पर भी उंगलियां उठती हैं। याद कीजिए, जब बीजेपी से निलंबित नेता नूपुर शर्मा पैंगबर विवाद में देशभर में दर्ज मुकदमों को एक साथ क्लब करने की गुहार लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं और उन्हें ही राजस्थान के उदयपुर में एक दर्जी कन्हैयालाल की इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा बर्बरता से गला काटने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया गया तब जजों की कितनी आलोचना हुई। आप सोच रहे होंगे, आखिर ये बातें क्यों की जा रही हैं? वो इसलिए क्योंकि केरल की एक निचली अदालत और मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट ने ऐसे-ऐसे फैसले दिए जिन पर आप भी हैरान होकर कहेंगे- ये क्या है! बड़ी बात है कि दोनों ही मामले महिला की मॉडेस्टी से जुड़े हैं।
महिला ने भड़काऊ कपड़े पहने थे, इसलिए आरोपी को मिल गई अग्रिम जमानत!
पहले बात केरल की। दक्षिण भारत के इस राज्य की एक अदालत ने यौन उत्पीड़न के आरोपी को यह कहते हुए अग्रिम जमानत दे दी कि जिस महिला ने आरोप लगाया, उसने घटना के वक्त काफी भड़काऊ कपड़े पहन रखे थे। कोझिकोड जिले की कोर्ट ने कहा कि आरोपी एक्टिविस्ट और लेखकर सिविक चंद्रन ने अपनी याचिका में जो तस्वीरें मुहैयार कराई हैं, उनमें शिकायत करने वाली महिला यौन भावना को उकसाने वाले कपड़े पहने हुए थे। कोर्ट ने कहा कि महिला के पोशाक को देखते हुए यह नहीं माना जा सकता है कि उसके साथ यौन उत्पीड़न हुआ। कोर्ट ने साफ कहा कि इस मामले में यौन उत्पीड़न का मामला ही नहीं बनता है। इस कारण आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी गई ताकि पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर सके। हालांकि, शिकायतकर्ता की तरफ से केरल सरकार ने मामले को हाई कोर्ट में ले जाने का फैसला किया। प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट में दलील दी कि चूंकि सत्र न्यायालय का आदेश कानूनी मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है और उसमें गलितयां हैं, इस कारण उच्च न्यायालय इसमें दखल दे।
पहले बात केरल की। दक्षिण भारत के इस राज्य की एक अदालत ने यौन उत्पीड़न के आरोपी को यह कहते हुए अग्रिम जमानत दे दी कि जिस महिला ने आरोप लगाया, उसने घटना के वक्त काफी भड़काऊ कपड़े पहन रखे थे। कोझिकोड जिले की कोर्ट ने कहा कि आरोपी एक्टिविस्ट और लेखकर सिविक चंद्रन ने अपनी याचिका में जो तस्वीरें मुहैयार कराई हैं, उनमें शिकायत करने वाली महिला यौन भावना को उकसाने वाले कपड़े पहने हुए थे। कोर्ट ने कहा कि महिला के पोशाक को देखते हुए यह नहीं माना जा सकता है कि उसके साथ यौन उत्पीड़न हुआ। कोर्ट ने साफ कहा कि इस मामले में यौन उत्पीड़न का मामला ही नहीं बनता है। इस कारण आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी गई ताकि पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर सके। हालांकि, शिकायतकर्ता की तरफ से केरल सरकार ने मामले को हाई कोर्ट में ले जाने का फैसला किया। प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट में दलील दी कि चूंकि सत्र न्यायालय का आदेश कानूनी मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है और उसमें गलितयां हैं, इस कारण उच्च न्यायालय इसमें दखल दे।
मध्य प्रदेश में तो हाई कोर्ट के फैसले पर ही विवाद
इसी तरह का मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से भी जुड़ा है। हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्राथमिकी दर्ज कराने में बहुत देर हो गई, इसलिए आरोपी को बलात्कार का आरोप से मुक्त किया जाता है। केरल की तरह यह मामला भी ऊपरी अदालत में पहुंचा। चूंकि केरल में सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाना था, इसलिए वहां की हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन मध्य प्रदेश में तो हाई कोर्ट के फैसले को ही चुनौती देनी थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया। सर्वोच्च न्यायालय के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने यह मामला आया तो जजों ने हाई कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई। दरअसल, यह मामला थोड़ा पेचीदा है। आइए समझते हैं...
नाबालिग लड़की ने कर ली खुदकुशी तो हाई कोर्ट बोला- गवाह ही नहीं है
जिस नाबालिग लड़की से रेप का आरोप लगा है, वह अब इस दुनिया में नहीं है। मृतक लड़की के परिजनों का कहना है कि जब लड़की की मौत हुई थी तब वह आठ महीने के पेट से थी। बच्ची ने गर्भवती अवस्था में ही आत्महत्या कर ली थी। तब लड़की की मां की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ रेप, पोक्सो एक्ट और आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया गया था। निचली अदालत ने मामले में आरोप तय कर दिए थे, तब आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाई कोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए निर्दोष बता दिया कि लड़की ने जिंदा रहते किसी पर आरोप नहीं लगाया था। चूंकि लड़की की मौत के बाद मां ने केस दर्ज कराया है, इस कारण यह मामला साफ-सुथरा नहीं बल्कि संदेहास्पद है। हाई कोर्ट ने इसी संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को सारे आरोपों से मुक्त कर दिया।
इसी तरह का मामला मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से भी जुड़ा है। हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्राथमिकी दर्ज कराने में बहुत देर हो गई, इसलिए आरोपी को बलात्कार का आरोप से मुक्त किया जाता है। केरल की तरह यह मामला भी ऊपरी अदालत में पहुंचा। चूंकि केरल में सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाना था, इसलिए वहां की हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन मध्य प्रदेश में तो हाई कोर्ट के फैसले को ही चुनौती देनी थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया। सर्वोच्च न्यायालय के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने यह मामला आया तो जजों ने हाई कोर्ट के फैसले पर हैरानी जताई। दरअसल, यह मामला थोड़ा पेचीदा है। आइए समझते हैं...
नाबालिग लड़की ने कर ली खुदकुशी तो हाई कोर्ट बोला- गवाह ही नहीं है
जिस नाबालिग लड़की से रेप का आरोप लगा है, वह अब इस दुनिया में नहीं है। मृतक लड़की के परिजनों का कहना है कि जब लड़की की मौत हुई थी तब वह आठ महीने के पेट से थी। बच्ची ने गर्भवती अवस्था में ही आत्महत्या कर ली थी। तब लड़की की मां की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ रेप, पोक्सो एक्ट और आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया गया था। निचली अदालत ने मामले में आरोप तय कर दिए थे, तब आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाई कोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए निर्दोष बता दिया कि लड़की ने जिंदा रहते किसी पर आरोप नहीं लगाया था। चूंकि लड़की की मौत के बाद मां ने केस दर्ज कराया है, इस कारण यह मामला साफ-सुथरा नहीं बल्कि संदेहास्पद है। हाई कोर्ट ने इसी संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को सारे आरोपों से मुक्त कर दिया।
हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई हैरानी
हाई कोर्ट के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए मृतक लड़की के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने एफआईआर दर्ज कराने में देरी के आधार पर आरोपी को डिस्चार्ज कर दिया, यह समझ से परे है। हाई कोर्ट को ऐसे मामले में पूरा साक्ष्य देखना चाहिए था। सर्वोच्च अदालत के जजों ने कहा कि एफआईआर कब दर्ज कराई गई, उसमें कितनी देर हुई, इससे ज्यादा मायने रखता है साक्ष्य विश्वसनीय है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो सबूत पेश किए गए हैं वो पहली नजर में क्या मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं, कोर्ट को यह देखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्य सरकार के रवैये पर भी दुख जताया। उने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में राज्य सरकार ने अपील दाखिल नहीं की। न्याय के लिए पीड़ित पिता को सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा जबकि स्टेट अपने राज्य के लोगों का कस्टोडियन होता है, इसलिए उसके लिए समाजिक हितों को देखना जरूरी है।' सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ ही हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए मृतक लड़की के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने एफआईआर दर्ज कराने में देरी के आधार पर आरोपी को डिस्चार्ज कर दिया, यह समझ से परे है। हाई कोर्ट को ऐसे मामले में पूरा साक्ष्य देखना चाहिए था। सर्वोच्च अदालत के जजों ने कहा कि एफआईआर कब दर्ज कराई गई, उसमें कितनी देर हुई, इससे ज्यादा मायने रखता है साक्ष्य विश्वसनीय है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो सबूत पेश किए गए हैं वो पहली नजर में क्या मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं, कोर्ट को यह देखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्य सरकार के रवैये पर भी दुख जताया। उने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में राज्य सरकार ने अपील दाखिल नहीं की। न्याय के लिए पीड़ित पिता को सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा जबकि स्टेट अपने राज्य के लोगों का कस्टोडियन होता है, इसलिए उसके लिए समाजिक हितों को देखना जरूरी है।' सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ ही हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।