नई दिल्ली
कोरोनावायरस की वजह से देश भर में हुए लॉकडाउन के बीच भारतीय रेल जीरो बेस्ड टाइम टेबल बनाने में जुटा है। इससे रेलवे अपने डिब्बों, इंजन, क्रू और मेंटनेंस डिपो का मैक्सिमम यूटिलाइजेशन कर पाएगा और अभी के मुकाबले कम समय में इसके ट्रेन गंतव्य तक पहुंच पाएंगे।
क्यों जरूरत पड़ी जीरो बेस्ड टाइम टेबल की
भारत में रेलवे का इतिहास सदियों पुराना है। इस समय कई गाड़ियां तो ऐसी हैं जो अंग्रेजोंं के जमाने से ही चल रही है। इस बीच ट्रेनों की मांग बढ़ने से देश भर में हर साल नई नई ट्रेनें चलाई जा रही हैं। इस वजह से टाइम टेबल में जहां कहीं गैप दिखा, उसी समय में नई गाड़ियों को घुसा दिया जाता है और उसी हिसाब से ट्रेन दौड़ने लगती है। इस तरह से ट्रेन घुसाने की वजह से बिना प्रायोरिटी वाली ट्रेनें जहां तहां खड़ी करके प्रायोरिटी वाली ट्रेनों को पास किया जाता है। इससे एक ट्रेन को पास कराने के चक्कर में दूसरी कई ट्रेनें घंटों पिटती हैं। इसके निदान के रूप में जीरो बेस्ड टाइम टेबल का विचार आया है।
क्या होता है जीरो बेस्ड टाइम टेबल
रेलवे बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि टाइम टेबल बनाते वक्त मान लिया जाएगा कि अभी देश में कोई ट्रेन नहीं चल रही है और चार्ट शून्य है। उसके बाद ट्रेन की डिमांड और ट्रेन की उपलब्धता के हिसाब से आपरेशान रिसर्च ट्रांसपोर्टेशन अल्गोरिदम से इस तरह का टाइम टेबल सेट किया जाता है कि हर ट्रेन तेजी से दूरी तय करे। इसमें किसी ट्रेन को पास करने के लिए कई ट्रेनोंं को साइड में नहीं लगाना पड़ेगा, क्योंकि सबका टाइम अलग अलग तरीके से सेट किया जाएगा।
हर जोन में बना दी गई है समिति
जीरो बेस्ड टाइम टेबल तैयार करने के लिए रेल मंत्रालय के निर्देश पर हर जोन में एक समिति बना दी गई है, जिसमें उस जोन के जीएम नोडल अधिकारी बनाये गए हैं। यह समिति अपने जोन के नेटवर्क में आपरेशन, मेंटनेंस तथा कंस्ट्रक्शन समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर योजना तैयार कर इसकी रिपोर्ट रेल मंत्रालय को भेजेगी। उसके हिसाब से ही नया टाइम टेबल तैयार किया जाएगा।
हर साल 01 जुलाई से लागू होता है नया टाइम टेबल
रेलवे में हर साल एक जुलाई से नया टाइम टेबल लागू करने की परंपरा है। इस साल अलग यह है कि इस समय पूरे देश में ट्रेनों का आपरेशन बंद है। कुछ विशेष परिस्थिति में सिर्फ स्पेशल ट्रेनों का आपरेशन हो रहा है वह भी सीमित संख्या में। ऐसे में जीरो बेस्ड टाइम टेबल बनाना और आसान है। अधिकारियों की कोशिश है कि आगामी एक जुलाई से पहले इसे तैयार कर लिया जाए ताकि 01 जुलाई 2020 से लागू किया जा सके।
7000 से ज्यादा स्टेशन लेकिन डिमांग 500 स्टेशनों पर ही
इस समय रेलवे के नेटवर्क में 7300 से भी ज्यादा स्टेशन हैं लेकिन पैसेंजर की ज्यादा डिमांड महज 500 स्टेशनों पर ही है। उसी हिसाब से जीरो बेस्ड टाइम टेबल में इन 500 स्टेशनों को ज्यादा तवज्जो मिलेगी।